Wednesday, August 12, 2020

गहत , कुलथ के औषधीय फायदे और खेती |

कुलथ की खेती दलहन फसल के रूप में की जाती है ।

कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में खुदाई से कुलथ के दाल के दानें मिले हैं, जिसकी समय अवधि 2000 BC मानी गयी है । भारत में इसकी खेती पूरे दक्षिण भारत के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल , बिहार , महाराष्ट्र और उत्तराखण्ड में की जाती है । इसे अलग अलग जगहों पर कुलथ, खरथी, गराहट, हुलगा, गहत और आदि कई नामों से भी जाना जाता है वैसे इसका वैज्ञानिक नाम मैक्रोटिलोमा यूनिफ्लोरम है ।यह एक गहरे भूरे मसूर की तरह होता है जिसका आकार गोल और चपटा होता है। यह एक प्रकार से लगभग सेम की तरह होता है। कुलथी दाल को मवेशियों के चारे (cattle feed) और घोड़े को खिलाने के लिए के रूप में प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसके औषधीय गुणों के कारण इसे पूरे भारत में भोजन, अंकुरित या पूरे अनाज (whole seed) के रूप में उपयोग किया जाता है। कुल्थी के दानों का इस्तेमाल सब्जी बनाने में भी किया जाता हैं ।  कुलथ की दाल में प्रोटीन बहुत होता है ।  साथ हीं इसमें कैल्शियम,  फासफोरस, आयरन , कार्बोहाइड्रेट और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । चिकित्‍सकीय प्रभाव होने के कारण इसको  बवासीर, एडीमा आदि के उपचार में उपयोग किया जाता है लेकिन इसे चिकित्‍सकीय रूप से प्रमाणित नहीं किया गया है। फिर भी इसके पोषक तत्‍वों (Nutrients) की मौजूदगी के कारण आयुर्वेदिक दवाओं में कुलथी दाल का उपयोग किया जाता है।


कुलथ दाल के पोषक तत्‍व

पोषक तत्‍वों (Nutrients) के आधार पर कुलथी की तुलना अन्‍य खाद्य अनाजों से की जाये तो यह कुछ इस प्रकार होगी । कुलथी के बीजों में प्रोटीन 25 प्रतिशत होता है ।  कुलथी में उपस्थित पोषक तत्व  प्रति 100 ग्राम 

प्रोटीन – 22 ग्राम                           
वसा – 0 ग्राम
खनिज – 3 ग्राम
फाइबर – 5 ग्राम                                           
कैल्शियम – 287 मिली ग्राम
आयरन – 7 मिली ग्राम
कार्बोहाइड्रेट – 57 ग्राम
फॉस्‍फोरस – 311 मिली ग्राम
  
भारत मै गहत के खेती 


भारत में गहत का उत्पादन लगभग सभी राज्यों में किया जाता है लेकिन कुछ प्रमुख राज्यों से भारत के कुल उत्पादन में 28 प्रतिशत कर्नाटक, 18 प्रतिशत तमिलनाडु, 10 प्रतिशत महाराष्ट्र, 10 प्रतिशत ओडिशा तथा 10 प्रतिशत आंध्र प्रदेश मै होता है। कुलथ दाल की पैदावार से जमीन का उपजाऊपन  भी ठीक होती है ।  इसको उगाने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढती हैं । इसके पौधों का इस्तेमाल हरी खाद बनाने में भी किया जाता हैं ।कुल्थी के पौधे झाड़ीनुमा और बेल के रूप में दिखाई देते हैं. जिनकी लम्बाई उड़द, मुंग के पौधों की तरह डेढ़ से दो फिट तक पाई जाती है|मुख्यतः रूप से असिंचित दशा में उगाया जाता है और जहां तक उत्तराखण्ड में गहत उत्पादन है यह परम्परागत रूप से  दूरस्थ खेतो में उगाया जाता है क्योंकि गहत की फसल में सूखा सहन करने की क्षमता होती है, साथ ही नाइट्रोजन फिक्सेशन करने की भी क्षमता होती है। इसकी खेती के लिये 20 से 30 डिग्री सेल्शियस, जहाँ 200 से 700 मिलीमीटर वर्षा होती है, उपयुक्त पायी जाती है।


औषधीय फायदे 
 कुलथ  का इस्तेमाल औषधीयरूप में बहुत उपयोगी होता है। इसके खाने से कृमि, श्वास संम्बधी रोग, बुखार, कफ, हिचकी, कास और पथरी जैसी कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। कुलथ के दानो का रंग भूरा पीला दिखाई देता है|
इसमें फाइटिक एसिड तथा फिनोलिक एसिड की अच्छी मात्रा होने के कारण इसे सामान्य कफ, गले में इन्फेक्शन , बुखार तथा अस्थमा आदि में प्रयोग किया जाता है।इसमे बीटा एन्जाइम को रोकने की क्षमता होती है जो कि कार्बोहाईड्रेड के पाचन को कम कर शुगर को घटाने में मदद करता है तथा साथ ही शरीर में इन्सुलिन रेजिसटेंस को भी कम करता है।आयुर्वेदिक औषधि सिस्टोन में भी गहत को मुख्य भाग में लिया जाता है जो कि किडनी स्टोन के लिये प्रयोग की जाती है। इसके अलावा अन्य विभिन्न शोधों में भी इसके उपयोग को किडनी रोगो के रूप में उपयुक्त पाया गया है|
 

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