तीन महीने में एक हेक्टेयर से ढाई से तीन लाख तक कमा सकते है इस फसल से ।
खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए किसान अब केवल वही फसलें उगाना चाहते हैं, जिनसे ज्यादा मुनाफा हो। फूलों की खेती और सब्जियों के बाद औषधीय फसलें किसानों की पसंद बनती जा रही हैं। ऐसी ही एक नकदी फसल ईसबगोल की है। किसानों के मुताबिक इसमें एक हेक्टेयर में ही ढाई से तीन लाख की कमाई हो हो सकती है, जबकि खर्चा काफी कम होता है।
ईसबगोल एक औषधीय फसल है। औषधीय फसलों के निर्यात में इसका प्रथम स्थान हैं। ईसबगोल की खेती से दस हजार से पंद्रह हजार निवेश करने के बाद तीन से चार महीने में ही ढाई लाख से तीन लाख रुपए तक किसान कमा रहे हैं। मेडिसिनल प्लांट फार्मिंग से जुड़े व्यापर हमेशा से ही लाभदायक मौके रहे हैं जिसमें कम पैसे लगाकर अधिकतम आय हासिल की जा सकती है और इसी व्यापर से जुडी है ईसबगोल की खेती ।
भारत में इसका उत्पादन मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश में करीब पचास हजार हेक्टयर में हो रहा हैं। मध्य प्रदेश में नीमच, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन एवं शाजापुर जिले प्रमुख हैं।
ईसबगोल की खेती करने का तरीका
जलवायु :- फसल की अच्छी पैदावार के लिए ठंडा व शुष्क वातावरण तथा पकाव के समय शुष्क मौसम की आवश्यकता रहती है। पकाव के समय वर्षा होने पर बीज झड़ जाता हैतथा छिलका फूल जाता है, इससे बीज की गुणवत्ता व पैदावार दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
जमीन :- ईसबगोल की खेती केलिए हल्की दोमट मिट्टी, बलुई मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो उपयुक्त रहती है। चिकनी हल्की काली व ज्यादा काली मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो वो भी उपयुक्त रहती है।
जमीन की तैयारी :- दो या तीन बार देसी हल से जुताई करें। मिट्टी को भुरभुरा बनाकर पाटा लगा दें। खेत को समतल करें ताकि कहीं भी पानी भरा न रह सके।
बिजाई का समय :- यह रबी मौसम की फसल है तथा इसकी बिजाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर माह होता है।
बिजाई का तरीका व बीज की मात्रा :- बीज को अच्छी नमी वाले खेत में डेढ़ किलोग्राम एक एकड़ की दर से छिडक़कर उर्वरक के रूप में हल्का सुहागा का प्रयोग किया जाता है। इसको 22.5 सेमी. यानि 9 इंच के फासले पर लाइनों में भी बोया जाता है। बीज एक से दो सेंटीमीटर से अधिक गहरा नहीं गिरना चाहिए। तीन किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में बिजाई के लिए काफी है।
खाद :- 18 किलोग्राम नाइट्रोजन व 6 किलोग्राम फासफोरस प्रति एकड़ में पर्याप्त रहता है। नाइट्रोजन दो भागो में डालना चाहिए। प्रथम खेत की तैयारी के समय, दूसरा पहली सिंचाई के बाद। संपूर्ण फासफोरस बिजाई से पहले ही मिट्टी में मिला दें।
सिंचाई :- बीज के जमाव के लिए पर्याप्त नमी का होना अत्यंत जरूरी है। अच्छा जमाव पर प्रथम सिंचाई 25-30 दिन बाद करें तथा उसके बाद दो बार सिंचाई क्रमश: एक महीने की अवधि पर करें। इस फसल में तीन बार सिंचाई पर्याप्त रहती है।
निराई व गुड़ाई :- फसल की धीमी बढ़वार व कम ऊंचाई होने के कारण प्रारंभिक अवस्था में दो-तीन गुड़ाई अवश्य करें ताकि खरपतवार फसल को नुकसान न पहुंचा सकें।
पौध संरक्षण :- कभी कभी जोगिया रोग मतलब डाऊनी मिल्ड्रयू फसल को नुकसान पहुंचा देता है। इसकी रोकथाम के लिए थायरम या सेरेंसान तीन ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बिजाई करनी चाहिए। बीमारी आने पर डाईथेन एम 45 या रेडोमिल का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर 2 से 3 बार 15 दिन के अंतर पर छिडक़ें।
तीन से चार माह में तैयार हो जाती है फसल :- ईसबगोल की फसल 100 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। पकने पर पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा सिरे भूरे रंग के हो जाते हैं। सिरों को अंगूठे व अंगुलियों से दबाने से बीज बाहर आ जाता है। अच्छी फसल से औसत पैदावार 4 से 5 क्विंटल तक ली जा सकती है।
प्रोसेसिंग के बाद मिलते हैं अधिक फायदे
अगर ईसबगोल के बीजों को प्रोसेस कराया जाए तो और ज्यादा फायदा होता है। प्रोसेस होने के बाद ईसबगोल के बीजों में से लगभग तीस प्रतिशत भूसी निकलती है और यही ईसबगोल की भूसी इसका सबसे महंगा हिस्सा माना जाता है। भारत के थोक बाजार में इस भूसी का रेट करीब पच्चीस हजार रुपये प्रति क्विंटल माना जाता है। यानी कि एक हेक्टेयर में पैदा हुई फसल की भूसी का दाम सवा लाख पर बैठता है। इसके अलावा ईसबगोल की खेती में से भूसी निकलने के बाद खली, गोली आदि अन्य उत्पाद बचते हैं जो करीब डेढ़ लाख रुपए तक में बिक जाते हैं।
औषधीय पौधों से विदेशी मुद्रा अर्जित करने में ईसबगोल प्रमुख उत्पाद है। इसके पौधे लगभग 30-50 सेमी. तक ऊँचे होते है तथा इनसे बीस से तीस कल्ले निकलते है। इसके बीज के ऊपर वाला छिलका जिसे भूसी कहते है इसी का औषधीय दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसे ईसबगोल की भूसी कहा जाता है। इसकी भूसी में म्यूसीलेज होता है जिसमें जाईलेज, एरेबिनोज एवं ग्लेकटूरोनिक ऐसिड पाया जाता है। इसके बीजों में सत्रह से उन्नीस प्रतिशत प्रोटीन होता है।
एक हेक्टेयर में ढाई लाख रुपए तक की हो जाती है कमाई
यदि हम एक हेक्टेयर खेती के आधार पर ही अनुमान लगाएं तो एक हेक्टेयर मैं ईसबगोल की फसल से लगभग पंद्रह क्विंटल बीज प्राप्त होते हैं और अगर मंडी में इसके ताजा दामों को पता करें तो इस समय लगभग बारह हजार पांच सौ रुपए प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। इस प्रकार से देखा जाए तो केवल बीज ही एक लाख नब्बे हजार रुपए के होते हैं। इसके अलावा सर्दियों में ईसबगोल के दाम बढ़ जाते हैं जिससे आमदनी और ज्यादा हो जाती है।
अस्सी फीसदी बाजार पर है भारत का कब्जा
ईसबगोल एक मेडिसिनल प्लांट है। इसके बीज का अनेक तरह की आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं में उपयोग होता है। विश्व के कुल उत्पादन का लगभग अस्सी प्रतिशत केवल भारत में ही पैदा होता है।ईसबगोल की फसल नब्बे दिन से लेकर एक सौ पंद्रह दिनों के अंदर ही पक कर तैयार हो जाती है जिसके बाद इस फसल को काटकर इसके बीजों को अलग कर लिया जाता है।
विदेशों में है इसकी भारी मांग
वर्तमान में हमारे देश से प्रतिवर्ष 120 करोड़ के मूल्य का ईसबगोल निर्यात हो रहा है। विश्व में ईसबगोल का सबसे बड़ा उपभोक्ता अमेरिका है। विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक देश ईरान, ईराक, अरब अमीरात, भारत, फिलीपीन्स इत्यादि हैं। भारत का स्थान ईसबगोल उत्पादन एवं क्षेत्रफल में प्रथम है